अन्य महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक करणी मंदिर :-
जन-जन की आराध्या, लोकदेवी करणी जी महाराज के छोटे बड़े मंदिर लगभग संपूर्ण राजस्थान में है। क्यांेकि भगवती श्री करणी जी किसी जाति या वर्ग विशेष की आराध्य देवी नहीं अपितु सम्पूर्ण लोक की श्रद्धा का केन्द्र रही है, इसलिए उनके विभिन्न स्थान है जिनमें से प्रमुखतःकतिपय मंदिर इस प्रकार हैः-
दासौड़ीः
बधाउड़ा के जीवराज जी रतनू को बीकानेर के राव कल्याणमल जी ने दासौड़ी गांव प्रदान कर सम्मानित किया था। जीवराज जी रतनू ने मां करणी जी के मंदिर की स्थापना कर गांव की छड़ी रोपी। दासौड़ी में चार सौ वर्ष पुराना भगवती करणी जी का विशाल मंदिर खड़ा है जो आस-पास के क्षेत्र का मुख्य आस्था स्थल है। मंदिर के पीछे विशाल क्षेत्र में ओरण है। करणी मंदिर से सटा करणीसर कुआं है जो करणी जी महाराज के पुण्य प्रताप से तथा उनके आशीर्वाद स्वरूप ही है।यह कुंआ दासौड़ी गांव तथा आस-पास के अनेक गांवो का लम्बे समय तक इकलौता पेयजल स्त्रोत रहा है। इस कूंए को जीवराज जी रतनू की ठकुरानी को स्वयं माँ करणी जी ने बताया था।
कीतासरः
डूंगरगढ़ से आगे कीतासर गांव में भी मां करणी जी का अच्छा मंदिर है। छोटड़िया से देशनोक आते समय रास्ते में श्री करणी जी महाराज ने एक विधवा ब्राह्मणी की गाय के मरे हुए बछड़े को ब्राह्मणी की प्रार्थना पर पुनर्जीवित कर दिया था। उसी स्थान पर स्मारक स्वरूप कीतासर में मंदिर स्थापित किया गया जहां आज भी लोग अत्यन्त आस्था से नमन कर स्वयं को धन्य समझते है।
अलवरः
अलवर के राजा बख्तावरसिंह के जीवन में आई भंयकर विपत्ति को माँ करणी जी ने ही टाली थी-
‘‘मात थे जिकण दित आय मेवात धर, लोवड़ी पृष्ठ रखवाळ लीधो।’’
उसके उपलक्ष्य में अलवर के राजा बख्तावर सिंह ने अलवर किले के पास करणी जी का विशाल मंदिर बनवाया, और उसकी सेवा-पूजा की विधिवत व्यवस्था की।
कर्णपुरा:
बीकानेर के राजा कर्णसिंह पर बादशाह औरंगजेब का कोप हुआ। महाराज कर्णसिंह ने देशनोक शरणागत होकर मां से प्रार्थना की:-
‘‘भिड़तां खुरसाण घणा दळ भाजा ................। करण सहाय आविया पाछा दळ मुड़िया पतशाह।’’ महाराजा कर्णसिंह जी को दक्षिण में सूबेदार बना कर भेजा गया। उन्होंने वहीं औरगांबाद के पास कर्णपुरा गांव बसा कर मां करणी का मंदिर बनाया।
इसी प्रकार बारहठ लखाजी ने पुष्करराज तथा मथुरा जी में करणी जी का मंदिर निर्माण कर उनकी सेवा-पूजा की व्यवस्था की। यहां पर अब श्री करणी मंदिर निजि प्रन्यास देशनोक द्वारा व्यवस्था की जाती है। जाति के सपूत लखाजी बारहठ ने इसी प्रकार चारों ही धामों में श्री करणी जी के मंदिर निर्माण कर बहुत बड़ा कार्य सम्पन्न किया है। परन्तु दूर-दराज होने के कारण बाद में सुचारू व्यवस्था नहीं हांे पाई और उन करणी मंदिरो को पण्डे-पुजारियों ने अपने आवास के रूप में परिवर्तित कर लिया।
इसी प्रकार सभी राजपूतएवं चारण छात्रावासों में मां करणी जी के मंदिर बने हुए है, जहां छात्र-गण प्रातः सांय मां की वंदना करते हैं। मां की श्रद्धा का क्षेत्र अत्यन्त सुविस्तृत है। राजस्थान में लगभग प्रत्येक गांव में छोटा-बड़ा करणी जी का मढ़, मंदिर, चबूतरा, खेजड़ा अवश्य मिलेगा। माँ के स्थानों और महिमा की गिनती करना तो आकाश के तारों की गणना करने के समान है।
कीरत करणादेव री, खिंडी इला चहुं खण्ड।
तीन लोक तारण तरण, व्यापत भई ब्रह्मण्ड।।
इति शुभम्।
आलेख- भंवरपृथ्वीराज रतनू
दासौड़ी
|