प्रथम धामः सुवाप
सुवाप गाँव मांगळियावाटी क्षेत्र, तहसील फलौदी, जिला-जोधपुर में स्थित है। यह गाँव मेहोजी मांगळिया द्वारा किनिया शाखा के चारणों को सांसण (स्वशासित) के रूप में प्रदत्त किया गया था। पूर्व पुरूष किनिया जी की नौवीं पीढ़ी में मेहोजी किनिया हुए है यथा- (1) मेहा (2) दूसल (3) देवायत (4) रामड़ (5) भीमड़ (6) जाल्हण (7) सीहा (8) करण और (9) किनिया। सुवाप गाँव के निवासी इन्हीं मेहाजी किनिया के घर देवल देवीजी आढ़ी की कोख से विक्रमी संवत्- 1444 की आसोज शुक्ला सप्तमी को भगवती श्री करणी जी का अवतरण हुआ। श्री करणी जी सात बहनें थी यथा- लालबाई, फूलबाई, केसरबाई, गेन्दबाई, सिद्धिबाई, रिद्धिबाई और गुलाबबाई। इनके दो भाई भी हुए जिनका नाम क्रमशः सातल एवं सारंग था। भगवती श्री करणी जी का जन्म नाम रिद्धिबाई था परन्तु आपकी दिव्य करणी एवं अलौकिकता की वजह से करणी नाम से विख्यात हुए। करणी जी आवड़ माता के परम उपासक थे। आपने सुवाप में बाल्यावस्था में आवड़ जी के मन्दिर का अपने हाथों से निर्माण किया। उसमें आप स्वयं पूजन-भजन करते थे। यह लघु पावन मन्दिर आज भी इतिहास को समेटे यथावत खड़ा है सुवाप में। इस ऐतिहासिक मंदिर की सुरक्षार्थ इसके वास्तविक स्वरूप को यथावत रखते हुए परकोटे एवं आर.सी.सी. की छत एवं विशाल आँगन का नवनिर्माण भक्तों द्वारा सम्पन्न करवाया जा रहा है।
सुवाप के वर्तमान भव्य मंदिर निर्माण स्थल पर 18वीं शताब्दी में जोधपुर के महाराजा मानसिंह जी के दीवान इन्द्रराज सिंघवी ने एक कमरा बनवाकर सूत्रपात किया था। इन्द्रराज सिंघवी महाराजा मानसिंह जी की सेना का संचालन करते हुए जा रहे थे, उसे इस स्थान पर चमत्कार हुआ। इसलिए जैन मतावलम्बी होते हुए भी दीवान इन्द्रराज सिंघवी ने यहां करणी जी का मंदिर बनवाया। सुवाप के वर्तमान भव्य मंदिर की यह आधार शिला थी। मंदिर में माँ करणी जी की भव्य प्रतिमा स्थापित है। अब इस मंदिर को भक्तों ने निर्माण द्वारा अत्यन्त भव्य और गरिमापूर्ण बना दिया है। मुख्य मंदिर के समीप ही भगवती श्री करणी जी के जन्म स्थल पर स्मारक का निर्माण अभी कुछ समय पूर्व हुआ है।
सुवाप में श्रद्धा की सजीव प्रतीक शेखे की जाळ खड़ी है। ज्ञात हो कि पूगल का अधिपति राव शेखा भाटी एकबार अपने शत्रुओं पर सेना सहित चढ़ाई कर मुहिम पर जा रहा था। सुवाप की सीमा में प्रवेश करते ही उसे करणी जी के दर्शन हुए। उस समय करणी जी अपने पिता मेहाजी के लिए भाता (भोजन) लेकर करनेत खेत जा रही थी। राव शेखा ने करणी जी का परिचय प्राप्त कर सेना सहित ऊँठ-घोड़ो से उतर कर अपनी पगड़ियां करणी जी के चरणों में रख आशीर्वाद प्राप्त किया। राव शेखा ने प्रसाद माँगा। करणी जी ने राव शेखा के 140 सवारों को दही और रोटी से तृप्त कर दिया और उनके पास दही-रोटी यथावत रही। उस स्थान को शेखे की जाळ कहा जाता है। जाळ का प्राचीन पेड़ आज भी हरा-भरा है, उसके पास छोटा चबूता बना हुआ है जिस पर भगवती की मूर्ति स्थापित है। नवरात्रि में मुख्य मंदिर से शोभायात्रा शेखे की जाळ आती है। इस शोभायात्रा में हजारों हजार स्त्री-पुरूष सम्मिलित होकर मां की जय-जयकार करते हैंै। सुवाप का यह बड़ा उत्सव है।
श्री करणी जी आदि शक्ति आवड़ जी के अवतार थे। करणी जी बचपन में ही आवड़ जी की पूजा-अराधना करते थे। उन्होनें स्वयं अपने हाथों से आवड़ माँ का छोटा मंदिर (मंढ़) बनाया था जिसमें वे ज्योति-पूजा इत्यादि करते रहते थे। यह छोटा सा पवित्र मंढ़ आज भी छः शताब्दी बीत जाने के बाद भी यथावत खड़ा भगवती आवड़ जीऔर करणी जी की भक्ति का सन्देश देता है।
करणी जी महाराज के सुवाप निवास काल के अन्य निम्नलिखित परचे अत्यन्त प्रसिद्ध हैः-
पिता को जीवनदानः- वर्षाऋतु में करणी जी के पिता श्री मेहोजी खेत पर कार्य कर घर लौट रहे थे। रास्ते में हरे घास मेंभंयकर जहरीला साप बैठा था। अनजाने में मेहोजी किनिया का पैर सांप पर पड़ गया। सांप ने तत्काल मेहोजी को डंक मारा। सांप के जहर से मेहोजी चेतनाहीन होकर गिर पड़े। मेहोजी के साथ के व्यक्तियों ने उन्हें उठाकर घर पहुँचाया, घर में कोहराम मच गया। करणी जी को जैसे ही ज्ञात हुआ तो उन्होनें मेहोजी के सर्पदंश वाली जगह अपना अमृत कर फेरा। हाथ का स्पर्श होते ही मेहोजी में पुनः प्राणों का संचार हो उठा और वे विषमुक्त होकर उठ बैठे। इस प्रकार पिता के प्राणों पर आए संकट को भगवती ने टाल दिया।
सूवा ब्राह्मण को उनके वरदान से पुत्र प्राप्ति हुई। मांगळिया राजपूतों का अनेक बार परस्पर वग्र मिटाकर सौख्य स्थापित किया। उनको एकता एवं पारस्परिेक प्रेम का संदेश दिया।
भगवती श्री करणी जी महाराज अलौकिक एवं दिव्य शक्तियों से सम्पन्न महाशक्ति के साक्षात एवं पूर्ण अवतार थे। परन्तु उन्होंने अपने चारण गृहस्थ कन्या के व्यावहारिक दैनिक क्रियाकलापों में कभी व्यवधान नहीं आने दिया। गायें चराना, भोजन बनाने में सहयोग देना, दूध दूहना, अतिथियों का अन्न-जल से सत्कार करना। ये दैनिक कार्य करणी जी प्रसन्नतापूर्वक निरन्तर सुचारू रूप से सम्पन्न करते थे। करणी जी महाराज द्वारा स्थापित यही मूल्य सुवाप एवं मांगळियावाटी क्षेत्र में आज भी जीवन्त रूप से कायम है। अतिथियों का अन्न-जल से सत्कार करना सुवाप के किनिया तथा मांगळियावाटी क्षेत्र के लोग आज भी अपना धर्म समझते हैं।
इन्द्रराज सिंघवी द्वारा मंढ़ निर्माण के पश्चात कालान्तर में वकील श्री सुखदेव जी किनिया ने जन सहयोग से विशाल मंदिर का निर्माण सम्पन्न कराया। श्री सुखदेव जी किनिया के पूर्व पुरूष सुवाप के ही थे। जोधपुर महाराजा ने उन्हें पोपावास गाँव प्रदान किया था। जीवन के सन्ध्याकाल में श्री सुखदेव जी किनिया ने अपने पूर्वजों की मातृभूमि एवं सामाजिक गौरव के उत्थान हेतु निष्ठापूर्वक जो अथक सत्प्रयास किया है वह सदैव चिरस्मरणीय रहेगा। उन्होनें अपनी वृद्धावस्था की परवाह न करते हुए चारणों के गाँव-गाँव घूमकर जन सहयोग से धन एकत्रित किया। इस कार्य में सुवाप के गोविन्ददान जी के पुत्र श्री मेघदान जी किनिया ने भी भरपूर सहयोग प्रदान किया जिससे यह भव्य भवन निर्मित हो पाया। विगत कई वर्षो से जयपुर के डॉ. गुलाबसिंह जी निरन्तर इस स्थान को दिव्य, सुन्दर एवं वैभव पूर्ण बनाने का प्रयास कर वे माँ करणी जी को हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं। |