तृतीय धाम- देशांण (देशनोक)
श्री नेहड़ी जीः- माँ करनला का प्रिय निवास और लम्बी साधना स्थली नेहड़ी जी है। यह स्थान जांगलू राज्य के घोड़ो एवं अन्य पशुओं का चरागाह (बीहड़) था। जांगलू के आततायी एवं दुष्ट तत्कालीन शासक राव कान्हा ने भगवती श्री करणी जी महाराज की घोर अवहेलना कर उनकी दिव्यता को ललकारा तो महाशक्ति ने सिंह रूप धारण कर कान्हा को मृत्युदण्ड देकर उसके भाई रिडमल को नेहड़जी में ही जांगलू का राजा मनोनीत किया था। यहीं पर राव रिड़मल ने अपना आधा राज्य मां करणी जी को भेंट किया जिसे दयालु मां ने ओरण के रूप में सर्वजन हितार्थ अर्पित कर दिया।
माँ की आज्ञा से दही मंथन करने हेतु मंथन दंड के रूप में खेजड़ी की सूखी लकड़ी रोपी गई थी जिसे भगवती श्री करणी जी महाराज ने अपने कर कमलों द्वारा दही केछींटे देकर हराभरा कर दिया। वहीं नेहड़ी जी आज लहलहाता हुआ हराभरा भरपूर खेजड़ा है जिसके नीचे प्रतिमा केरूप में मां करणी जी की पूजा होती है। वस्तुतः नेहड़ी जी की खेजड़ी कल्पतरू एवं ओरण की बेरी के झाड़ (पेड़) वृन्दावन स्वरूप हैं।
बहुत वर्ष नेहड़ी जी निवास कर ओरण का निर्माण (जाल वृक्षों का बेर वृक्षों में परिवर्तन) पूरा हो गया, तब उस वृन्दावन के मध्य मां करणी जी ने आठंवी पुरी देशनोक का निर्माण किया-
सात पुरी संसार में, सातूं ही मेर समान।
पुरी आठवीं पेखिये, देव धाम देशाण।।
देशनोक मरूभोम के मस्तक का तिलक है, श्रृंगार है। देशनोक के निर्माण की तिथि डिंगल के विख्यात कविवर एवं भगवती श्री करणी जी के वंशज भोमजी बीठू के शब्दों में:- छप्पय:
सुझ चवदै सै समत, सकल शुभ साल छिहंतर।
सदपति शुक्ल बीज, छनवार मास वैशाख मंयमत।।
सगत कला विसतार, दीप सांता दरसाई।
इन्द्र आद ओलगै, इलासज वेस उमाई।।
छय रंग रंग आकास छत, झुक हुलास इमृत झरै।
देशाण थपै सांसण दुगह, मीढ़ इडग गिरमेर रै।।
गुम्भारा (निज मंदिर):-
नेहड़ी जी के पश्चात देशनोक नगर की स्थापना कर अपनी साधना हेतु मातेश्वरी ने अपने स्वयं के कर कमलों द्वारा प्रस्तर खण्डों पर जाल की लकड़ी का छाजन देकर बिना चूने-गारे से विक्रमी संवत्-1594 की चैत्र बदी द्वितीया (2) को इस गुम्भारे का निर्माण किया। इस गुम्भारे की छत जाल की लकड़ियों से बनाई गई है। यद्यपि जाल की लकड़ी अत्यन्त कमजोर समझी जाती है परन्तु भगवती श्री करणी जी महाराज के दिव्य कर कमलों के स्पर्श होने के कारण वह अद्यावधि सुदृढ़ एवं पूर्णतया सुरक्षित रूप से विद्यमान है। स्वयं भगवती द्वारा निर्मित यह गुम्भारा ही निज मंदिर के रूप में शोभायमान है। इस गुम्भारे की निर्माण प्रक्रिया को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस महाशक्ति की सेवा में राजा-महाराजा, सेठ-साहुकार एवं आमजन सदैव तत्पर रहते थे उस दिव्य शक्ति स्वरूपा करणी जी महाराज का स्वयं का जीवन एवं रहन-सहन कितना तपोनिष्ठ तथा सादगीपूर्ण एवं विलक्षण था।
बीकानेर रियासत की अध्ष्ठिात्री देवी करणी जी महाराज की अलौकिक कृपा और आशीर्वाद से बीकानेर के शासक राव जैतसी ने मुगल बादशाह बाबर के पुत्र तथा अफगानिस्तान के बादशाह कामरान को राती घाटी के युद्ध में आसोज सुदी छठ विक्रमी संवत् 1595 में परास्त करने के उपलक्ष्य में राव जैतसी ने गुम्भारे के ऊपर कच्ची इंटो का मंढ़ (मंदिर) बनवाया। इसी प्रकार बीकानेर के शासक सूरतसिंह द्वारा तथा कालान्तर में महाराजा गंगासिंह एवं अन्य मां के लाडले भक्तों द्वारा देखते ही बनती है। सफेद संगमरमर पत्थर पर बारीक खुदाई का काम, बेल, बूटे एवं पत्तियां सब कुछ अलौकिक है।
इस मंदिर में स्थित गुम्भारे में माँ भगवती श्री करणी जी महाराज मूर्ति स्वरूप में विराजमान है। दोनों नवरात्रि और पूरे वर्ष यहां भक्ति एवं आस्था का समुद्र हिलोरे लेता है। यहां आने वाले प्रत्येक भक्त की मनोकामनापूर्ण होती है क्योंकि अपने वचनानुसार स्वयं भक्त वत्सल भगवती दिव्य रूप में यहां अहर्निस विद्यमान है। यह देवी-उपासकों का राजस्थान में सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। परम जागृत एवं सिद्ध शक्ति पीठ होने के कारण यहां की शांति एवं दिव्यता अलौकिक एवं शब्दातीत है। मंदिर के मुख्य द्वार के निकट ही दशरथ मेघवाल का स्थान है जहां नियमित रूप से पूजा होती है। ज्ञातव्य हो कि दशरथ मेघवाल करणी जी महाराज का परम भक्त एवं गायों का चरवाहा था जो गायों की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गया था। उसके बलिदान के सम्मानार्थ श्री करणी जी महाराज ने अपने जीवनकाल में ही उसकी पूजा प्रारम्भ करवादी थी। छुआछूत के उस युग में ऐसा उदाहरण अन्यत्र मिलना अत्यन्त दुर्लभ है।
इस विशाल मंदिर के प्रांगण में एक तरफ करणी जी महाराज की आराध्या देवी आवड़ जी का भव्य मंदिर स्थित है जिसमें शक्ति अवतार इन्द्रबाईसा की प्रतिमा भी विद्यमान है। इसी प्रकार मंदिर परिसर में जूझारों का स्थान भी पूजित है। इस परिसर मंे ही मानबाईजी का छोटा मंदिर स्थित है, जहो नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती है।
मुख्य मंदिर से लगभग 1 किमी. की दूरी पर भगवती आवड़ जी महाराज का मंदिर स्थित है। यह देशनोक नगर की घनी आबादी के बीच शोभायमान है। इस मंदिर में स्वयं करणी जी महाराज की पूजा मंजूषा (करण्ड) रखा हुआ है। इस मंदिर में ऐतिहासिक करण्ड (पूजा मंजूषा) की ही मुख्य पूजा की जाती है। इसमें आवड़ जी महाराज की सिंदूर चर्चित प्रतिमा भी स्थित है। इस मंदिर के पास ही देपोजी का निवास था, कोटड़ी थी, चैकी थी। इस ऐतिहासिक स्थान को स्मारक एवं दर्शनीय स्थल के रूप में स्थापित करने की महत्ती आवश्यकता है।
cदेशनोक स्थित करणी मंदिर की प्रसिद्धि विश्व स्तर पर है। यहां पूरे वर्ष भक्तों का मेला रहता है। मंदिर के निकट यात्रियों के ठहरने हेतु सुन्दर एवं सुविधाजनक धर्मशालाएँ बनी हुई हैं। आसोज की नवरात्रि में यहां कई प्रकार के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक आयोजन होते हैं।
षष्ठी तिथि को कविवर भोम जी बीठू की स्मृति में अखिल भारतीय डिंगल कवि सम्मेलन, सप्तमी को जयन्ती सामारोह एवं भक्ति संगीत संध्या का आयोजन होता है। सप्तमी को ही चारण समाज के प्रतिभावान विद्यार्थियों का सम्मान समारोह चारण नारायण सिंह गाडण पुनर्थ ट्रस्ट एवं श्री करणी मंदिर निजि प्रन्यास के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जाता है। अष्टमी को विप्लव के कवि मनुज देपावतकी स्मृति में अखिल भारतीय हिन्दी कवि सम्मेलन का आयोजन होता है। इन समस्त व्यवस्थाओं केसुचारू संचालन के लिए श्री करणी मंदिर निजि प्रन्यास एवं देपावत कुटुम्ब के समर्पित कार्यकर्ताओं की सेवाएं अमूल्य है। क्योंकि वे माँ और माँ के भक्तों की सेवा में अपनी भूख, प्यास, निद्रा एवं विश्राम को भूल कर सतत रूप से व्यवस्था में रहते है। उनकी कर्मठता, निष्ठा एवं श्रद्धा नमन योग्य है।
मां करणी जी इस पावन लीला स्थली में भगवती की निरन्तर कृपा वृष्टि होती रहती है और भक्त गण उसमें सराबोर होते रहते हैं। मातेश्वरी के परचे एवे महिमा अनन्त है जिसक गुणगान करते हुए भोमजी बीठू ने लिखा हैः- छप्पयः-
इते इला आकाश, इते सिस सूरज ऊगै।
इते नीर पवन्न, पाप पुन इते ज पूगै।।
भुयंग जिते धर भार, अगन जित घृतता ऊठै।
इते नक्षत्र सत अंस, विरखा सत बादळ वूठै।।
जल गंग मेर सामंद जितै, जितैवेद हड़मंत जत।
कव भोम कहै करनल कला, सतएतां ऊपर सगत। |