तेमड़ाराय धाम
जैसलमेर से विदा होकर मां करणी जी तेमड़ाराय पधारी और वहां आपनी आराध्या आवड़ मां के दर्शन किए।पदोपरान्त वे अपनी मौसियाई बहनों- बूट और बैचराय से मिलने हेतु धाट में स्थित खारोड़ा गांव पधारी। मां भौतिक रूप से चाहे कहीं विराजमान रहो उनके कान सदैव अपने भक्तों की करूण पुकार सुनने हेतु सचेत रहते है। ऐसी ही एक घटना घटित हुई- सुवाप के निकट स्थित गांव आऊ का निवासी और मातेश्वरी का भक्त अणदा खाती कुंए में कुछ कार्य करके लाव (बरत) के सहारे से कुंए से बाहर निकल रहा था कि लाव अनायास ही बीच में से टूट गई। भक्त ने अपनी आराध्या को पुकारते हुए केवल दो अक्षरों- क और र का ही उच्चारण किया था कि दुम्भी (दो मुहँ वाला सांप) बन कर भगवती ने अपने भक्त को बचाने हेतु टूटी हुई लाव के दोनों सिरों को अपने दोनों मुंहो से पकड़ कर अणदा खाती की रक्षा की:-
आऊ मे तूटी बरत, पैसारै पैठांह।
अणदो खाती तारियो, खारोड़ै बैठांह।।
इस प्रकार खारोड़ा से पुनः जैसलमेर इत्यादि स्थानों को पवित्र करती हुई मातेश्वरी बैंगटी गाँव पधारी। वहां राजस्थान के पांच पीरों में से एक पीर हरबूजी सांखला को आशीर्वाद प्रदान कर अनवरत प्रयाण करती हुई संवत 1595. चैत्र शुक्ला नवमी (रामनवमी) के दिन प्रातःकाल जैसलमेर-बीकानेर राज्यों की सीमा पर स्थित धनेरी-खराडी तलाइयों के मध्य पहुंची। राम नवमी का सूर्य उदय हो रहा था। भगवती अपने प्रातःकालीन नित्य कर्म करने हेतु रथ रोककर धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतर आई। फिर पुत्र पूनोजी को जल लाने धनेरी तलाई की और विदा किया तथा सारंग से कहा कि- ‘‘मुहुर्त आ गया है, तुम इस झारी का जल मुझ पर उडेलो।’’ सारंग ने आदेश का पालन किया। झारी का जल मस्तक से स्पर्श होते ही मां करणी जी तेज पुंज में परिणित हो गई। करणी जी महाराज की तप्त कंचन काया ने प्रकाश के रथ पर आरूढ़ होकर अपने लोक को प्रयाण किया। कुछ ही समय में उनकी दिव्य काया ज्योति स्वरूप होकर धराधाम से ऊपर उठती हुई उदित होते हुए सूर्य में विलीन हो गई। यह महाशक्ति का महाप्रयाण था। रथ के बैल भड़क उठे और सांरग उस देव दुर्लभ तथा अद्भुत दृश्य को देखकर चेतनाहीन होकर गिर पड़ा। यथा दोहाः-
पनरासै पिचाणवें, चैत शुकल गुरू नम्म।
देवी सागण देह सूं, पूगा जोत परम्म।।
देव दुर्लभ यह घटना वर्तमान श्री करणी परमधाम गड़ियाला की है। यह धरा, यह पावन स्थल धन्य हो गया जिसे भगवती श्री करणी जी महाराज ने देव धाम के लिए चुना।
इस स्थान पर प्रारम्भ में एक चबूतरा ही था जिस पर मां के स्नान से पावन दो शिला खण्ड तथा भगवती की प्रतिमा स्थित थी। नवरात्रि में चबूतरे को लीपा जाता तथा राती जोगे लगाए जाते। दूर-दूर से भक्त जन यात्रा कर यहां आते और मनौति मांगने पर उनके मनोरथ सिद्ध हो जाते। गड़ियाला के रावल भी भगवती के परम भक्त थे। यह स्थान अत्यन्त जागृत एवं सिद्ध पीठ है। फिर सायरबाईसा ने इस स्थान पर एक कमरा बनवाया, उसमें सेवा-पूजा होने लगी। इसी दौरान परमधाम की महत्ता को समझते हुए बीकानेर के पूर्व महाराजा एवं मां के परमभक्त डाॅ. करणीसिंह जी ने यहां यात्रियों की सुविधार्थ ऐ विशाल जल कुण्ड का निर्माण करवाया। वर्ष 1980 में हाडलां निवासी भाटी अमरसिंह यहां पटवारी के रूप में पदस्थापित होकर आए। उन्होंने कोलायत के पूर्व प्रधान श्री उम्मेद सिंह भाटी खिंदासर एवं इन पंक्तियों के लेखक भंवर पृथ्वीराज रतनू दासौड़ी के साथ मिलकर इस गरिमामय पावन धाम की महत्ता को उजागर करने हेतु एक विशाल मेले का आयोजन किया। इस मेले में गुजरात, राजस्थान, दिल्ली एवं हरियाणा आदि अनेक स्थानों से भक्तगण एकत्र हुए। परमधाम गड़ियाला मढ़ की अहमियत प्रतिपादन हेतु इन पंक्तियों के लेखक भंवर पृथ्वीराज रतनू द्वारा लिखित पुस्तक- ‘‘करणी परमधाम गड़ियाला’’ का विमोचन हुआ और हजारों प्रतियां निःशुल्क वितरित की गई। उक्त पुस्तक में इस पावन धाम की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया गया हैः-
दोहाः- करणी मढ़ रिण में कियो, सगती धाम सिधाय।
जिण रो जस लिखियो जको, पीथू अरपै पाय।।
पनरै समत पिचाणवें, गिरिजा नम गुरूवार।
परम धाम कीधो प्रसिद्ध, सगती धाम सिधार।।
परम धाम पावन प्रसू, सह तीरथ सिरमौड़।
देशनोक से दूसरो, जग में अवर न जोड़।।
जाझा आवै जातरी, चहुं दिशी पाळा चाल।
परम धाम परचा मिलै, तव किरपा ततकाल।।
रिण में फरकै राज री, फतह धजा चहुंफेर।
दुख दाटै सुख संचरै, देवी करै न देर।।
इस प्रकार यह पावन परम धाम उत्तरोतर नवनिर्माण द्वारा भव्य बनाया जा रहा है। मां करणी जी का यह चैथा धाम है जिसकी दिव्यता, पावनता, एवं शान्ति अलौकिक है। इसे ग्रामीण क्षेत्रों में रिण मढ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। प्र्राचीन जैसलमेर-बीकानेर रियासत की सीमा पर स्थित यह मढ़ दीन-दुखियों की शरण स्थली है। यहां फरियाद लेकर आने वाले भक्तों की तुरन्त सुनवाई होती है। महम्माया यहां पर हाजरां हजूर है।
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